प्रदर्शन लोगों के लिए है; इबादत ख़ुदा के लिए हैं

क्या कभी आप पर ऊँगली उठाई गई हैं? एक बार मेरे साथ ऐसा ही हुआ था! मुझ पर ऐसे इलज़ाम लगाए गए थे जो मैंने कभी किए ही नहीं थे - तब ऐसा लगा कि वे चाहते थे कि मैं, संस्था की आर्थिक हालातों की वजह से, अपनी मर्जी से चला जाऊं लेकिन उनकी यह योजना असफ़ल हुई - पर यह कहानी मैं किसी और दिन बताऊंगा। 🙃
अपने और अपने क़ाम के प्रति नाखुश रिव्यूज अच्छे नहीं लगते हैं, फ़िर भी ऐसा हर तरफ़ होता है। यीशु मसीह के जैसे बनने से ज़्यादा, सफ़लता पर ज़ोर दिया जाता हैं।
मंच तब बनते हैं जब हम सबसे ज़्यादा दूसरों के मंज़ूरी की तमन्ना रख़ते हैं, और इसलिए, हम खुद को दूसरों से ज़्यादा ऊपर उठाने की कोशिश करते हैं।
यह संघर्ष नया नही है - यह आदम और हव्वा के बगीचे में ही शुरू हुआ था:
"परमेश्वर तो जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे, तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी और तुम भले और बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के समान हो जाओगे।” जब स्त्री ने देखा कि उस वृक्ष का फल खाने के लिए अच्छा, और आँखों के लिए लुभावना, और बुद्धि प्राप्त करने के लिए मनभावना है; तब उसने उसका फल तोड़कर खाया और अपने साथ अपने पति को भी दिया, और उसने भी खाया।” – उत्पत्ति ३:५-६
उन्हें लगा की फ़ल खाने से वे ख़ुदा के जैसे बन जायेंगे और उनका स्तर और भी बढ़ेगा।
मसला उस झूठ पर यक़ीन करने से शुरू होता है कि बुलंदी आज़ादी के बराबर होती है। हक़ीक़त में, किसीका अपनी तरफ़ ध्यान आकर्षित करने और खुद की मर्ज़ी पूरी करने से हम अकसर फँस जाते हैं और हमारे हि बनाए मंच हम पर हावी हो जातें हैं।
आदम और हव्वा, ख़ुदा के जैसे बनने के बजाय, उससे जुदा हो गए। (उत्पत्ति ३:२३)
मेरी कहानी में, सारें उलझनों को सुलझाने की कोशिश के बावजूद, मुझे संस्था से निकाला गया। मुझे बाद में यह एहसास हुआ कि वह कितना ज़हरीला माहौल था और जिसने मुझे थका दिया था।
दोस्त , मेहनत अज़ीम है, लेकिन तब नहीं जब प्रदर्शन-प्रेरित काम हो! ख़ुदा ने हमें सुक़ून और इबादत की ज़िंदगी जीने के लिए बुलाया हैं - इंसान की मंजूरी के लिए नहीं, बल्कि ख़ुदा के जलाल के लिए:
"और जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो। क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हें इसके बदले प्रभु से विरासत मिलेगी। तुम प्रभु मसीह की सेवा करते हो।" – कुलुस्सियों ३:२३-२४
प्रदर्शन लोगों के लिए है; इबादत ख़ुदा के लिए हैं।
दोस्त , इस सप्ताह को हम दुआ से समाप्त करें:
"ऐ आसमानी पिता, शुक्रिया कि सच्ची आज़ादी सिर्फ़ तुझमें हासिल होती है। मुझे अपने राज्य में एक स्तंभ बना। मुझे दृढ़ खड़ा रहने और तेरी रहनुमाई हासिल करने में मदद कर। यदि मुझे कोई मंच मिले, तो मुझे इसे अच्छे से इस्तेमाल करने के लिए बुद्धि और समझदारी दे। यीशु मसीह के नाम में, आमीन।"

